मेष लग्न में मंगल के फल:
- मेष लग्न की कुण्डली में मंगल 1st (लग्न) भाव का स्वामी तथा 8th भाव का स्वामी है क्यूँकि मंगल की दो राशियाँ होती हैं – मेष राशि (१) तथा वृश्चिक राशि (8) l लग्न भाव का स्वामी होने के कारण यह कुण्डली का सबसे पहला योग कारक ग्रह माना जाता है l
- यदि मंगल देव जन्म लग्न कुण्डली के 3rd, 4th (नीच राशि ), 6th, 8th तथा 12th भाव में बैठे हैं तो मंगल देव अपने बलाबल के अनुसार अशुभ फल देंगे क्योँकि यहां वह गलत भाव में पड़े होने के कारण अपनी योगकारकता खो देते हैं l
- यदि मंगल देव जन्म लग्न कुण्डली के 1st, 2nd, 5th, 7th, 9th, 10th तथा 11th भाव में पड़े हैं तो मंगल देव अपनी क्षमतानुसार अपनी दशा/अंतर में शुभ फल देते हैं l
- इस लग्न कुण्डली में यदि मंगल किसी भाव में सूर्य के साथ 17° से कम अंश के अंतर में अस्त हो तो मंगल देवता का रत्न, मूँगा धारण किया जा सकता है l
- यदि मंगल 3rd, 4th (नीच का), 6th, 8th तथा 12th भाव में पड़े हैं तो उसका दान व पाठ करके उनकी अशभता को कम किया जा सकता है l
- इस लग्न कुण्डली में मंगल विपरीत राज योग में नहीं आते क्योँकि वह लग्नेश भी है l विपरीत राजयोग के लिए लग्नेश का शुभ व बलि होना अनिवार्य है l
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