1. प्रथम भाव में मंगल :
- धनु लग्न की कुण्डली में यदि मंगल देवता लग्न में विराजमान हों तो जातक मांगलिक नहीं होता है क्यूंकि यहाँ पर मंगल ग्रह त्रिकोण का स्वामी, लग्नेश बृहस्पति का मित्र, होने के कारण अति योगकारक ग्रह हैं जिसकी सातवें भाव पर पड़ रही सातवीं दृष्टि जातक को खुशहाल और स्वस्थ वैवाहिक जीवन जीने में सहायता करती है I
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2. चतुर्थ भाव में मंगल :
- धनु लग्न की कुण्डली में यदि मंगल देवता चतुर्थ भाव में विराजमान हों तो जातक मांगलिक नहीं माना जाता है क्यूंकि त्रिकोण का स्वामी केंद्र में स्थित होकर कभी बुरा नहीं होता I यहाँ मंगल ग्रह की चौथी दृष्टि सुखी वैवाहिक जीवन में सहायक है I
3. सप्तम भाव में मंगल :
- धनु लग्न की कुण्डली में यदि मंगल देवता सप्तम भाव में विराजमान हों तो जातक मांगलिक नहीं माना जाता है क्यूंकि मंगल ग्रह यहाँ पर अति योगकारक ग्रह होने के कारण वैवाहिक जीवन के लिए अच्छा फल ही देगा I
4. अष्टम भाव में मंगल :
- धनु लग्न की कुण्डली में यदि मंगल देवता अष्टम भाव में विराजमान हों तो जातक मांगलिक नहीं होता है क्यूंकि आठवें भाव में मंगल ग्रह के नीच का हो जाने से मांगलिक दोष का परिहार हो जाता है I एक और नियमानुसार आठवां भाव की राशि का जल तत्व होने से भी मांगलिक दोष का परिहार हो जाता है I
5. द्वादश भाव में मंगल:
- धनु लग्न की कुण्डली में यदि मंगल देवता बारहवें भाव में विराजमान हों तो जातक मांगलिक नहीं होता है क्यूंकि यहाँ पर मंगल ग्रह योग कारक हैं तथा स्वः राशि में स्थित हैं ! इसलिए यहाँ पर मांगलिक दोष नहीं माना जाता है I
नोट: धनु लग्न की कुंडली में मांगलिक दोष कहीं भी नहीं होता है I
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