Somaveer Singh

Somaveer Singh has pursued his Mechanical Engineering from HBTU Kanpur in 2012. Later, he joined IIT Roorkee for Post graduation, and after an year he left the institute due to financial problem and joined PSU HEC Ltd, Ranchi in January 2014. Thereafter, he faced some unforeseen problem in life and consulted to a few astrologers but none were to his satisfaction nor the problem went away. And this is when his journey begun in the field of astrology. After doing research in astrology for more than a couple of years, he has put his learnings and findings in 217 pages as ""Self Made Destiny"". In this book, he has covered all articles scientifically. I am trying to inform you about the effects of planets. There are innumerable planets in our solar system, out of which there are nine planets that affect the entire human race, Sun, Moon, Mars, Mercury, Jupiter, Venus, Saturn (real planet) and Rahu, Ketu (shadow planet) from all these planets. कुछ बड़ा करना है तो अपनी राह खुद चुनो । भेड़ – बकरियों की तरह नहीं, शेर की तरह चलो ।। कितना भी हो कठिन रास्ता, हर हाल में आगे बढ़ो । ये दुनिया तुम्हें डराएगी, सताएगी, रुलाएगी, हर रोज एक नया रूप दिखाएगी ।। पर जिस दिन तुम अपनी मंजिल को पाओगे । तब यही दुनिया नाम तुम्हारा जपते – जपते पीछे – पीछे आएगी ।। कुछ पाना है तो कुछ खोना होगा । हसना है तो रोना होगा ।। चमकना है यदि सोने की तरह तो आग में खुद को तपाना होगा । बदलना चाहते हो अपनी किस्मत तो सबसे पहले खुद को बदलना होगा ।। भूल जाओ तुम कौन हो, बस एक बात को ध्यान में रखो । सबसे पहला है अपना काम, बाकी सब उसके बाद रखो ।। Founder & Managing Director @ Kiara Astrology Research Centre ® Author - Self Made Destiny Office Address: Plot-3, BalajiPuram, Makdikheda, Indira Nagar, Kanpur-208002 (UP) website: www.kiaraastro.com

रत्न विज्ञान – रत्नों की सम्पूर्ण जानकारी

रत्न पहनने का अर्थ यह है कि जिस ग्रह का रत्न धारण किया जाता है उस ग्रह की किरणों का शरीर में बढ़ाना I रत्न हमेशा योग कारक और सम ग्रह का पहना जाता है जब वो अच्छे फल देने में सक्षम न हो I यदि योग कारक ग्रह कुण्डली में सूर्य से अस्त हो …

रत्न विज्ञान – रत्नों की सम्पूर्ण जानकारी Read More »

शनि देव की ढैय्या कैसे देखें तथा उपाय?

शनि देव की ढैया (2½  साल): जब गोचर के शनिदेव का भ्रमण लग्न कुण्डली के चन्द्रमा से चतुर्थ भाव में आ जाए तो इसे शनिदेव का ढैया कहते है l जब गोचर के शनिदेव का भ्रमण लग्न कुण्डली के चन्द्रमा से अष्ठम भाव में आ जाए तो वह भी शनिदेव का ढैया कहलाता है l …

शनि देव की ढैय्या कैसे देखें तथा उपाय? Read More »

शनि देव की साढ़ेसाती कैसे देखें तथा उपाय?

साढ़ेसाती का अर्थ होता है 7½  साल I शनिदेव का एक राशि में भ्रमण 2½ साल का होता है  इसलिए तीनों राशियों का कुल समय 2½  + 2½  + 2½  = 7½ साल हुआ I ज्यादातर साढ़ेसाती बुरी ही होती है और उसके प्रभाव अशुभ होते हैं परन्तु कुण्डली में शनि देव अगर योग कारक …

शनि देव की साढ़ेसाती कैसे देखें तथा उपाय? Read More »

ग्रहों का अंश तथा षड़बल

जिस तरह इन्सान दो पांवो पर चलता है उसी प्रकार षडबल और अंशमात्र बलाबल के अनुसार ही ग्रह अपना फल देता है l दोनों में से एक के बल में भी यदि कमी आ जाती है तो उनके फल में कमी आ जाती है l जैसे एक रेलगाड़ी दो पटरियों पर चलती है वैसे ही …

ग्रहों का अंश तथा षड़बल Read More »

ज्योतिष के महत्वपूर्ण सिद्धांत

योग करक ग्रह की परिभाषा : योग करक ग्रह कुण्डली में अच्छे घर का मालिक होता है l यह ग्रह जहाँ बैठता है, जहाँ देखता है और जहाँ जाता है उन घरों की वृद्धि करता है I एक योग कारक ग्रह भी मारक (शत्रु) बन सकता है I यदि योग कारक ग्रह उदय अवस्था में …

ज्योतिष के महत्वपूर्ण सिद्धांत Read More »

ग्रहों की दृष्टियों का क्या महत्त्व है ?

ज्योतिष विद्या में ग्रहों की दृष्टि का अर्थ उस ग्रह का प्रभाव दूसरे भावों पर पड़ना होता है जैसे कि एक टॉर्च एक जगह पर चलती है उसकी रौशनी या किरणें दूसरी जगह पर पड़ती हैं l उसी प्रकार ग्रह अगर एक भाव में बैठा हो तो उसका असर दूसरे भावों पर भी पड़ता है …

ग्रहों की दृष्टियों का क्या महत्त्व है ? Read More »

वक्रीय (Retrograde) तथा अस्त (Combust) गृह का क्या अर्थ है ?

सभी ग्रह अपनी चाल चलते – चलते वक्रीय होते हैं परन्तु इस बात को सदैव स्मरण रखना चाहिए कि सूर्य और चन्द्रमा कभी भी वक्रीय नहीं होते हैं l ये सदैव मार्गीय चलते हैं (इसीलिए बीता हुआ समय कभी भी वापस लौटकर नहीं आता है l) वक्रीय ग्रह का सही अर्थ : जब भी कुण्डली …

वक्रीय (Retrograde) तथा अस्त (Combust) गृह का क्या अर्थ है ? Read More »

उच्च ग्रह तथा नीच ग्रह

उच्च ग्रह : जब कोई ग्रह किसी राशि में सामान्य से अधिक अच्छे फल देने बाध्य हो जाए , तो उसे उच्च का ग्रह कहा जाता है l यदि कुण्डली में योग कारक ग्रह उच्च का होता है तो वह ग्रह सामान्य से अधिक अच्छे फल देने में बाध्य हो जाता है I यदि कुण्डली …

उच्च ग्रह तथा नीच ग्रह Read More »

ग्रहों की स्थित के अनुसार जातक का स्वभाव (लग्न का स्वभाव)

कुण्डली का प्रथम घर/भाव लग्न कहलाता है l कुण्डली के प्रथम घर (लग्न) से जातक के स्वभाव के बारे में जाना जाता है l लग्न के स्वभाव की जानकारी के लिए यह देखना अति अनिवार्य है कि लग्न भाव में कोन सा ग्रह विराजमान है लग्न भाव पर कितने ग्रहों की दृष्टि है I यदि …

ग्रहों की स्थित के अनुसार जातक का स्वभाव (लग्न का स्वभाव) Read More »

ग्रहों का विश्लेषण तथा कारक भाव

हमारे सौर्य मंडल में अनगिणत ग्रह हैं l लेकिन हमारे शरीर पर जिन 9 ग्रहों का प्रभाव पड़ता है, ज्योतिष शास्त्र में उन्हीं 9 ग्रहों का अध्यन किया जाता है जो इस प्रकार हैं : सूर्य                                6.   शुक्र चन्द्रमा                            7.   शनि मंगल                              8.   राहु (छाया ग्रह) बुध                                 9.   केतु (छाया ग्रह) गुरु (बृहस्पति) ग्रहों से …

ग्रहों का विश्लेषण तथा कारक भाव Read More »

Scroll to Top